पूनम पाण्डे: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS ) को दुनिया का एक तरह से सबसे बड़ा NGO कहा था। संघ खुद को गैर-राजनीतिक और सांस्कृतिक संगठन बताता है। जिस तरह VHP, ABVP, वनवासी कल्याण आश्रम, मजदूर संघ, संस्कार भारती संघ से जुड़े संगठन हैं, वैसे ही BJP भी संघ की राजनीतिक इकाई है। इसे संघ की भाषा में आनुषांगिक संगठन कहते हैं। संघ खुद को गैर-राजनीतिक कहता है तो क्या इसका मतलब ये है कि संघ के लोग चुनाव में BJP के लिए वोट नहीं मांगते? इसका जवाब हां भी है और नहीं भी।
साइलेंट तरीके से सपोर्ट
संघ के लोग कभी भी सीधे BJP को वोट देने की अपील नहीं करते। लेकिन वे जिन मुद्दों पर और जिस तरह से लोगों से बात करते हैं उससे साफ हो जाता है कि वे अपनी वैचारिक पार्टी BJP के लिए समर्थन मांग रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में संघ के स्वयंसेवकों ने करीब छह महीने पहले ही छोटी-छोटी पंचायतें लगानी शुरू कर दी थीं, खासकर ग्रामीण इलाकों में। दलित, पिछड़े और अति-पिछड़ों के बीच संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता की बात कर रहे हैं, जो संघ का अभियान है।
साथ ही, हिंदू एकजुटता की और राष्ट्रवाद की भी। बिहार में संघ की करीब दो हजार शाखाएं लगती हैं। इनमें शारीरिक कसरत के अलावा वैचारिक कसरत भी होती है। इस दौरान ये भी चर्चा होती है कि देश के लिए या राज्य के लिए क्या अच्छा है और इस तरह राजनीतिक बात भी होती है। संघ कहता रहा है कि स्वयंसेवक भी इसी समाज का हिस्सा हैं और समाज में जो भी होता है उन्हें प्रभावित करता है, चुनाव और राजनीति भी। इसलिए वे इससे दूरी नहीं बना सकते।
बिहार में जिन जगहों पर संघ की शाखाओं की संख्या कम है, वहां स्वयंसेवक लोगों से छोटे-छोटे ग्रुप में व्यक्तिगत संपर्क कर रहे हैं। इसी तरह का संपर्क अभियान और मीटिंग्स संघ के स्वयंसेवकों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी की। 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान कहा गया कि स्वयंसेवकों ने प्रचार से अपने कदम पीछे खींच लिए जिसका शायद BJP को नुकसान भी हुआ।
हालांकि इसके बाद हुए हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में संघ ने पार्टी का साथ दिया। दोनों राज्यों के चुनाव के दौरान संघ के अलग-अलग संगठनों ने कई छोटी बैठकें कीं और BJP के पक्ष में माहौल बनाया। इसका असर भी दिखा और पार्टी को जीत मिली।चुनाव में BJP का अपना संगठन तो काम करता ही है, लेकिन संघ और उसके संगठनों का भी अहम रोल रहता है। ये संगठन लगभग सभी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
मजबूत संगठन का फायदा
संघ के करीब 35 आनुषांगिक संगठन हैं। उसकी देश में करीब 88 हजार दैनिक शाखाएं लगती हैं। संघ की जब भी समन्वय मीटिंग होती है तो उसमें उसके सारे संगठनों के साथ BJP के भी प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं। बिहार में जब संघ ने अपना साइलेंट अभियान शुरू किया तब ऐसे मुद्दों और ऐसे वोटर्स की पहचान भी की, जो सरकार से नाराज हैं। इस आधार पर पार्टी की रणनीति तय की गई और नाराज वोटर्स को मनाने के लिए BJP की स्थानीय टीम सक्रिय हुई। इन मीटिंग्स में जंगलराज के मसले पर भी बात हुई। इस मुद्दे को BJP ने चुनाव का बड़ा मुद्दा भी बनाया है। माहौल बनाने के अलावा संघ के स्वयंसेवक मतदान के दिन ये भी सुनिश्चित करते हैं कि लोग वोट देने जाएं। हर चुनाव में वोटिंग पर्सेंट बढ़ाने के लिए यह अभियान चलता है।
साइलेंट तरीके से सपोर्ट
संघ के लोग कभी भी सीधे BJP को वोट देने की अपील नहीं करते। लेकिन वे जिन मुद्दों पर और जिस तरह से लोगों से बात करते हैं उससे साफ हो जाता है कि वे अपनी वैचारिक पार्टी BJP के लिए समर्थन मांग रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में संघ के स्वयंसेवकों ने करीब छह महीने पहले ही छोटी-छोटी पंचायतें लगानी शुरू कर दी थीं, खासकर ग्रामीण इलाकों में। दलित, पिछड़े और अति-पिछड़ों के बीच संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता की बात कर रहे हैं, जो संघ का अभियान है।
साथ ही, हिंदू एकजुटता की और राष्ट्रवाद की भी। बिहार में संघ की करीब दो हजार शाखाएं लगती हैं। इनमें शारीरिक कसरत के अलावा वैचारिक कसरत भी होती है। इस दौरान ये भी चर्चा होती है कि देश के लिए या राज्य के लिए क्या अच्छा है और इस तरह राजनीतिक बात भी होती है। संघ कहता रहा है कि स्वयंसेवक भी इसी समाज का हिस्सा हैं और समाज में जो भी होता है उन्हें प्रभावित करता है, चुनाव और राजनीति भी। इसलिए वे इससे दूरी नहीं बना सकते।
बिहार में जिन जगहों पर संघ की शाखाओं की संख्या कम है, वहां स्वयंसेवक लोगों से छोटे-छोटे ग्रुप में व्यक्तिगत संपर्क कर रहे हैं। इसी तरह का संपर्क अभियान और मीटिंग्स संघ के स्वयंसेवकों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी की। 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान कहा गया कि स्वयंसेवकों ने प्रचार से अपने कदम पीछे खींच लिए जिसका शायद BJP को नुकसान भी हुआ।
हालांकि इसके बाद हुए हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में संघ ने पार्टी का साथ दिया। दोनों राज्यों के चुनाव के दौरान संघ के अलग-अलग संगठनों ने कई छोटी बैठकें कीं और BJP के पक्ष में माहौल बनाया। इसका असर भी दिखा और पार्टी को जीत मिली।चुनाव में BJP का अपना संगठन तो काम करता ही है, लेकिन संघ और उसके संगठनों का भी अहम रोल रहता है। ये संगठन लगभग सभी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
मजबूत संगठन का फायदा
संघ के करीब 35 आनुषांगिक संगठन हैं। उसकी देश में करीब 88 हजार दैनिक शाखाएं लगती हैं। संघ की जब भी समन्वय मीटिंग होती है तो उसमें उसके सारे संगठनों के साथ BJP के भी प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं। बिहार में जब संघ ने अपना साइलेंट अभियान शुरू किया तब ऐसे मुद्दों और ऐसे वोटर्स की पहचान भी की, जो सरकार से नाराज हैं। इस आधार पर पार्टी की रणनीति तय की गई और नाराज वोटर्स को मनाने के लिए BJP की स्थानीय टीम सक्रिय हुई। इन मीटिंग्स में जंगलराज के मसले पर भी बात हुई। इस मुद्दे को BJP ने चुनाव का बड़ा मुद्दा भी बनाया है। माहौल बनाने के अलावा संघ के स्वयंसेवक मतदान के दिन ये भी सुनिश्चित करते हैं कि लोग वोट देने जाएं। हर चुनाव में वोटिंग पर्सेंट बढ़ाने के लिए यह अभियान चलता है।
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