पूर्वी सिंहभूम, 8 नवंबर (हि.स.)। झारखंड के घाटशिला विधानसभा उपचुनाव अब प्रचार के अंतिम चरण में पहुंच चुका है। यानी कि 9 नवंबर की शाम काे प्रचार थम जाएगा। 11 नवंबर को मतदान तथा 14 नवंबर को मतगणना होगी। कुल 2,55,823 मतदाता इस त्रिकोणीय मुकाबले में फैसला लेंगे कि क्या इंडी गठबंधन की सत्ता बनी रहेगी या भाजपा पुराना किला फतह करेगी। 13 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन असली जंग झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के बीच है।
झामुमो की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की जोड़ी लगातार मैदान में सक्रिय है। पार्टी ने पूरे संगठन को एक्टिव मोड में डाल दिया है। बताया जाता है कि अंतिम दो दिनों के लिए पार्टी ने विशेष रणनीति तैयार की है, जिसके तहत हर पंचायत में मिनी जनसंवाद कार्यक्रम और महिला समूहों की बैठकों के जरिए मतदाताओं से सीधी बात की जा रही हैै। झामुमो का फोकस इस बार ओबीसी और महिला मतदाताओं पर है, जिन्हें निर्णायक माना जा रहा है।
उपचुनाव को भाजपा ने बनाया प्रतिष्ठा का सवालभाजपा ने घाटशिला उपचुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। पार्टी नेतृत्व ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि घाटशिला जीतने के लिए बूथ स्तर पर पूरी ताकत झोंकनी होगी। इसके लिए 42 कमजोर बूथों पर विशेष टीमें तैनात की गई हैं, जिनकी निगरानी सीधे प्रदेश स्तर से की जा रही है। भाजपा के दिग्गज नेता बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, आदित्य साहू, पूर्व मंत्री बड़कुवर गगराई और बंगाल से सुवेंदु अधिकारी सहित भाजपा के कई बड़े नेता लगातार क्षेत्र में जनसभाएं कर रहे हैं। पार्टी अपने बूथ मैनेजमेंट और संगठन की मजबूती पर भरोसा जता रही है, हालांकि स्थानीय स्तर पर कुछ मतभेद अब भी बने हुए हैं जो परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।
तीसरी ओर झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के अध्यक्ष जयराम महतो एक बार फिर चुनावी समीकरणों में हलचल पैदा कर चुके हैं। वे अकेले ही झामुमो और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बन गए हैं। उनका जनाधार सीमित होते हुए भी प्रभावशाली है और पिछली विधानसभा की तरह इस बार भी वे वोट बैंक में सेंध लगाने की स्थिति में हैं। यही वजह है कि दोनों बड़े दल उनके प्रभाव को नज़र अंदाज नहीं कर पा रहे हैं।
घाटशिला की इस जंग को राजनीतिक विश्लेषक नेतृत्व बनाम नेटवर्क की लड़ाई बता रहे हैं। झामुमो हेमंत-कल्पना के नेतृत्व और भावनात्मक जुड़ाव के सहारे मैदान में है, जबकि भाजपा बूथ प्रबंधन और स्थानीय कार्यकर्ताओं की ताकत पर भरोसा कर रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चार दिनों से घाटशिला में कैंप कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस उपचुनाव को वे खुद की साख से जोड़कर देख रहे हैं।
इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा है। भाजपा में शामिल होने के बाद वे अपने पुत्र सोमेश सोरेन के लिए टिकट पाने में सफल तो रहे, लेकिन अब उनकी राजनीतिक साख का फैसला मतदाता करेंगे। अगर सोमेश को जीत मिलती है तो चंपाई सोरेन का कद भाजपा में और मज़बूत होगा, अन्यथा उनके विरोधियों को हमला करने का मौका मिल जाएगा।
इधर, चुनावी सरगर्मी के बीच जुबानी जंग भी तेज हो गई है। अब सबकी निगाहें 11 नवंबर के मतदान और 14 नवंबर को आने वाले नतीजों पर टिक गई हैं। घाटशिला की जनता यह तय करेगी कि क्या हेमंत-कल्पना की जोड़ी फिर से जीत का परचम लहराएगी या भाजपा अपने पुराने किले को फतह करने सफल होगी। इस चुनाव में हर पार्टी का भविष्य और कई नेताओं की साख दांव पर है।
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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद पाठक
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