अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों- रोसनेफ़्ट और लुकोइल पर नए प्रतिबंध लगाए हैं.
ट्रंप के इस फ़ैसले को रूस पर यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने के दबाव के फ़ैसले के तौर पर देखा जा रहा है.
इसे ट्रंप प्रशासन की ओर से की गई अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई बताया जा रहा है. साथ ही यह पहला मौक़ा है, जब ट्रंप प्रशासन ने सीधे तौर पर रूस पर आर्थिक दबाव डाला डाला है.
भारत और चीन रूसी तेल के सबसे बड़े ख़रीदारों में शामिल हैं. सितंबर, 2025 तक छह महीनों में भारत के तेल आयात में रूस का योगदान 36 प्रतिशत रहा, जो लगभग 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन था.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि भारत कैसे और किस हद तक ट्रंप के इस फ़ैसले से प्रभावित होगा?
ट्रंप रूस से तेल ख़रीदने के कारण भारत पर 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगा चुके हैं और अब भारत को कुल 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ का सामना करना पड़ रहा है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उनके 'बहुत बड़े' प्रतिबंध जल्द ही हट सकेंगे क्योंकि युद्ध सुलझ जाएगा.
क्या भारत को रोक पाएंगे ट्रंप?बाइडन प्रशासन ने रूस पर सीधा प्रतिबंध लगाने के बजाय 'प्राइस कैप' प्रणाली अपनाई थी.
यानी तेल की अधिकतम क़ीमत तय की थी ताकि रूस की आमदनी घटे लेकिन आपूर्ति बनी रहे.
लेकिन रूस ने 'शैडो फ़्लीट' बनाकर इन नियमों से बचने के रास्ते निकाल लिए. पुरानी टैंकरों के बेड़े और समानांतर बैंकिंग सिस्टम की मदद से रूस अब भी रोज़ाना क़रीब आठ लाख बैरल तेल समुद्री रास्ते से बेच रहा है, लगभग उतना ही जितना युद्ध से पहले बेच रहा था.
भारत की नायरा एनर्जी (जिसमें रोसनेफ़्ट की हिस्सेदारी है) पहले से ही ईयू के प्रतिबंधों का सामना कर रही है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़, "भारत की बड़ी रिफ़ाइनरियों ने कहा है कि अब रूसी तेल खरीदना लगभग नामुमकिन है. अब तक भारत का तर्क था कि प्राइस कैप के तहत रूसी तेल ख़रीदना क़ानूनी है. लेकिन नए अमेरिकी प्रतिबंधों ने स्थिति बदल दी है."
दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के निदेशक अजय श्रीवास्तव का मानना है कि ट्रंप ने भले ही दो कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह सभी रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध है.
अजय श्रीवास्तव बीबीसी न्यूज़ हिन्दी को बताते हैं, "अमेरिका ने भारत के निर्यात पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ़ लगा दिया है और आरोप लगाया है कि वह रूसी तेल का इस्तेमाल करके 'युद्ध को बढ़ावा' दे रहा है. यह जुर्माना सिर्फ़ रोसनेफ़्ट या लुकोइल जैसी प्रतिबंधित कंपनियों से तेल ख़रीदने पर ही नहीं बल्कि किसी भी रूसी कच्चे तेल पर लागू होता है- चाहे वह वैध तरीक़े से ही ख़रीदा गया क्यों ना हो. इतनी बड़ी सज़ा का सामना किसी और देश को नहीं करना पड़ रहा है"
अब भारत के सामने एक अहम सवाल है- क्या 25 प्रतिशत टैरिफ़ तब हटेगा जब भारत रोसनेफ़्ट और लुकोइल से तेल ख़रीदना बंद कर देगा? या फिर राहत पाने के लिए उसे रूस से आने वाला सारा तेल छोड़ना होगा?
अजय श्रीवास्तव का कहना है, "पहला विकल्प भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के नियमों के दायरे में रखता है, जबकि दूसरा विकल्प भारत को रूस से तेल आयात करने से रोकता है. यह उस देश के लिए लगभग असंभव है, जो अपनी ज़रूरत का 85 प्रतिशत तेल आयात करता है.''
तेल की बढ़ती क़ीमतें राष्ट्रपति ट्रंप के लिए भी चुनौती हो सकती हैं, क्योंकि उन्होंने महंगाई घटाने का वादा किया है. हालांकि, रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद 100 डॉलर प्रति बैरल तक जाने के बाद अब क़ीमतें पहले से काफ़ी नीचे हैं.
वरिष्ठ भारतीय रिफाइनरी अधिकारियों ने ब्लूमबर्ग को बताया कि अमेरिका की ओर से रोसनेफ़्ट और लुकोइल पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के कारण भारत में रूसी तेल का आना लगभग बंद आ जाएगा, जिससे दोनों अर्थव्यवस्थाओं को तीन सालों से चली आ रही तेल व्यापार की अहम कड़ी टूट जाएगी.
सोसाइटी जनरल के हेड ऑफ़ कमोडिटीज़ रिसर्च माइकल हेग ने फाइनैंशियल टाइम्स सेकहाकि 'स्थिति अभी भी अनिश्चित है. यह साफ़ नहीं है कि रूस का उत्पादन कितना घटेगा या अगर भारत पीछे हटता है तो उसे नए ख़रीदार मिल पाएंगे या नहीं.'
एफटी से आरबीसी कैपिटल मार्केट्स की हेलीमा क्रॉफ़्ट का कहना है कि 'सेकेंडरी सैंक्शंस' उन रिफ़ाइनरियों को मजबूर करेंगे जो अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं कि वे तेल के दूसरे स्रोत तलाशें.
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Reuters रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच होने वाली प्रस्तावित मुलाक़ात फ़िलहाल स्थगित कर दी गई है भारत कितना रूसी तेल ख़रीदता है? अमेरिकी प्रतिबंध का सामना कर रही रोसनेफ़्ट और लुकोइल रूस की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनियां हैं. ये दोनों मिलकर देश के कुल कच्चे तेल निर्यात का लगभग आधा हिस्सा देती हैं.
फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले भारत बहुत कम रूसी तेल ख़रीदता था. लेकिन 2022 के अंत में हालात बदल गए, जब जी7 देशों ने प्रतिबंध लगाए और कई देशों ने रूसी तेल ख़रीदना बंद कर दिया.
रूस से तेल का आयात बढ़ने से पहले साल 2021-22 में भारत के शीर्ष 10 कच्चे तेल आपूर्तिकर्ताओं में रूस, इराक़, सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका, ब्राज़ील, कुवैत, मेक्सिको, नाइजीरिया और ओमान शामिल थे.
कमोडिटी डेटा फर्म केप्लर के अनुमान के अनुसार, इस महीने (अक्तूबर) भारत का रूसी तेल आयात लगभग 20 फ़ीसदी बढ़कर 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो जाएगा, क्योंकि यूक्रेनी ड्रोन की ओर से रूस की रिफ़ाइनरियों पर हमला किए जाने के बाद रूस ने निर्यात बढ़ा दिया है .
रूस से तेल ख़रीदने का फ़ायदा भारत की प्राइवेट रिफ़ाइनरियों को पहुंचा. उन्होंने पहले रूस से सस्ता तेल ख़रीदा और फिर उसे पेट्रोल और डीजल में बदलकर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अच्छी ख़ासी कीमत पर बेचा. इन कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड और रूसी एनर्जी ग्रुप रोसनेफ़्ट की हिस्सेदारी वाली कंपनी नायरा का नाम शामिल है.
ताज़ा प्रतिबंधों के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने कहा है कि कंपनी इन प्रतिबंधों से होने वाले प्रभावों का आकलन कर रही है और भारत सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करेगी.
कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "हम इन प्रतिबंधों के असर और नई शर्तों का जायज़ा ले रहे हैं. यूरोपीय संघ के दिशा-निर्देशों के अनुसार, हम यूरोप में तैयार तेल के आयात से जुड़ी सभी शर्तों का पालन करेंगे. अगर भारत सरकार की ओर से इस विषय पर कोई दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं, तो हमेशा की तरह हम पूरी तरह उनका पालन करेंगे. रिलायंस हमेशा से भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्य के साथ खड़ी रही है."
रिलायंस के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी सभी लागू प्रतिबंधों और नियमों का पालन करने के अपने लंबे और बेदाग़ रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है.
तेल की क़ीमतों पर क्या असर होगा?भारत और चीन के अलावा रूस का तेल तुर्की (लगभग 4 लाख बैरल प्रतिदिन), बेलारूस और कुछ अन्य देशों को भी जाता है. रूसी तेल ख़रीदने वाले देशों को अब जल्द फ़ैसला लेना होगा.
रूस के वित्त मंत्रालय के अनुसार, तेल और गैस राजस्व देश के संघीय बजट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है. अगर निर्यात और आमदनी में गिरावट आती है, तो रूस की युद्ध क्षमता पर सीधा असर पड़ेगा.
ट्रंप की घोषणा के बाद ब्रेंट क्रूड तेल की क़ीमत 3.40 डॉलर (5.4 प्रतिशत) बढ़कर 65.99 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जबकि अमरीकी वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड की क़ीमत 3.29 डॉलर (5.6 प्रतिशत) बढ़कर 61.79 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. यह दिखाता है कि बाज़ार प्रतिबंधों के असर को लेकर चिंतित है.
एनर्जी ऐस्पेक्ट्स की अमृता सेन का कहना है कि क़ीमत 70 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती है.
फाइनेंशियल टाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा, "बाज़ार असली असर का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अगर रोज़ाना दो मिलियन बैरल से ज़्यादा की सप्लाई में रुकावट आई, चाहे अस्थायी ही क्यों न हो, तो क़ीमतों पर दबाव बढ़ेगा."
अमेरिका उन वित्तीय संस्थानों पर 'सेकेंडरी सैंक्शंस' लगाने की धमकी देता है जो प्रतिबंधित रूसी कंपनियों से लेनदेन करते हैं.
इसका मतलब है कि जो भी कंपनी रूसी तेल ख़रीदती है, उसे तय करना होगा- क्या वह अमेरिकी बाज़ार तक अपनी पहुंच बनाए रखना चाहती है या रूसी कंपनियों से व्यापार करना चाहती है.
अधिकतर मामलों में अंतरराष्ट्रीय कंपनियां या संस्थान अमेरिका को चुनती है. इसके पीछे की वजह साफ़ है क्योंकि डॉलर फंडिंग और पश्चिमी वित्तीय व्यवस्था से कट जाना बहुत बड़ा जोख़िम है.
इस तरह से ट्रंप के प्रतिबंध किसी कंपनी या देश के लिए ब्लैकलिस्ट की तरह काम करते हैं, अगर अमेरिकी प्रशासन इन्हें सख़्ती से लागू करे.
उदाहरण के लिए ट्रंप ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए तो भारत ने ईरान से तेल की ख़रीद बंद कर दी थी क्योंकि भारत के लिए ईरान या अमेरिका में से एक को चुनने की नौबत आ गई थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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