जिले की चिकित्सा व्यवस्था के लिए सोमवार का दिन ऐतिहासिक रहा। दौसा जिला अस्पताल में पहली बार किसी बालिका का मोतियाबिंद का सफल ऑपरेशन किया गया। खास बात यह रही कि यह सर्जरी बेहोशी (जनरल एनेस्थीसिया) देकर की गई, जो तकनीकी रूप से अत्यंत जटिल और सावधानीपूर्ण प्रक्रिया होती है।
अस्पताल प्रशासन ने इसे चिकित्सा सेवाओं की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।
🔹 पहली बार जिला अस्पताल में हुआ ऐसा ऑपरेशनअस्पताल अधीक्षक डॉ. राजेंद्र शर्मा ने बताया कि अब तक जिला अस्पताल में केवल वयस्क मरीजों के मोतियाबिंद ऑपरेशन ही किए जाते थे, वह भी स्थानीय एनेस्थीसिया (आंख में सुन्न करने वाली दवा) के जरिए। लेकिन पहली बार एक 10 वर्षीय बालिका का ऑपरेशन बेहोश कर किया गया।
ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा और मरीज की दृष्टि अब सामान्य हो गई है।
इस ऑपरेशन को नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील मीणा, एनेस्थेटिस्ट डॉ. रश्मि अग्रवाल और ऑपरेशन थिएटर स्टाफ की टीम ने मिलकर अंजाम दिया। टीम ने लगभग एक घंटे तक चली सर्जरी में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया।
डॉ. मीणा ने बताया कि छोटे बच्चों में मोतियाबिंद का ऑपरेशन सामान्य वयस्कों की तुलना में अधिक जटिल होता है क्योंकि बच्चा लंबे समय तक आंखें स्थिर नहीं रख पाता, इसलिए बेहोशी देना आवश्यक था।
ऑपरेशन के बाद बच्ची को 24 घंटे निगरानी में रखा गया और अब उसकी आंख की रोशनी सामान्य हो गई है। परिवार ने जिला अस्पताल की टीम का आभार जताया।
बच्ची के पिता ने कहा, “हमने सोचा नहीं था कि सरकारी अस्पताल में इतना बढ़िया इलाज मिलेगा। अब हमारी बेटी साफ़ देख पा रही है।”
अस्पताल में इस सफल सर्जरी के बाद चिकित्सा कर्मियों में खुशी का माहौल है। डॉक्टरों का कहना है कि यह सफलता जिला अस्पताल की बढ़ती तकनीकी क्षमता और विशेषज्ञ डॉक्टरों की मेहनत का परिणाम है।
डॉ. राजेंद्र शर्मा ने बताया कि पहले बाल मोतियाबिंद के ऐसे केस जयपुर या अजमेर जैसे बड़े अस्पतालों में भेजे जाते थे। अब दौसा में ही ऐसे ऑपरेशन संभव हो पाएंगे।
🔹 स्वास्थ्य सेवाओं में नई दिशाइस उपलब्धि से दौसा जिले की चिकित्सा सेवाओं को नई दिशा मिलेगी। अस्पताल प्रशासन ने बताया कि आने वाले महीनों में बाल नेत्र रोग यूनिट को और सशक्त बनाने की योजना है, ताकि जिले के ग्रामीण इलाकों से आने वाले बच्चों को भी बेहतर नेत्र उपचार मिल सके।
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